Home Breaking News जब पं दीनदयाल उपाध्याय ने कहा- मुझे बधाई न दें,यह मेरा नववर्ष...

जब पं दीनदयाल उपाध्याय ने कहा- मुझे बधाई न दें,यह मेरा नववर्ष नहीं है

इसे इस देश की सहिष्णुता ही कहिये की इसने सदैव सभी धर्मों के उत्सवों को समभाव से स्वीकारा है। इस नववर्ष से जुड़ा जनसंघ के संस्थापक और ‘एकात्म मानववाद’ का संदेश देने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deen Dayal Upadhyay) का एक किस्सा है जो बेहद चर्चित हुआ था।


 

पण्डित दीनदयाल उपाध्याय बहुत ही सरल और सौम्य विचारों के मालिक थे। देश को एकात्म मानववाद जैसी प्रगतिशील विचारधारा देने वाले पण्डित जी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे और छात्र जीवन से ही स्वयं सेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता थे। वैचारिक स्तर पर सशक्त व्यक्तित्व के धनी दीनदयाल जी भाजपा और संघ के आदर्श माने जाते है।
अंग्रेजी नव वर्ष शुरू हो गया, बधाइयों का दौर अभी जारी है, हो भी क्यों न, भारत में एक बड़ा धड़ा धूमधाम से इसे मनाता है। अच्छा है, उत्सव तो भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा वैदिक काल से रहे हैं, क्या हुआ अगर यह उत्सव अंग्रेजी है तो। समय-समय पर इस बात पर भी काफी चर्चाएं होती रहीं कि भारतीयों को अंग्रेजों, जिन्होंने हमें कई सौ सालों तक गुलाम बनाकर रखा, का उत्सव मनाना चाहिए या नहीं।
आज भले पूरी दुनिया नया वर्ष मना रही है, लेकिन भारत में एक बड़ा वर्ग है, जो इसे नए वर्ष की मान्यता नहीं देता। इस वर्ग के अपने तर्क व तथ्य हैं, जो उचित भी हैं। सामान्यतः भारत में इस अंग्रेजी नव वर्ष का विरोध नहीं होता। बता दें कि राष्ट्र की सेवा में सदैव तत्पर रहने वाले दीनदयाल उपाध्याय का यही उद्देश्य था कि वे अपने राष्ट्र भारत को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक क्षेत्रों में बुलंदियों तक पहुंचा देख सकें। वे जातिपात और मजहब की राजनीति के घोर विरोधी और एक सच्चे राष्ट्रवादी थे।

इतिहास के पन्नों में से

मगर एक महान व्यक्तित्व ऐसे भी हुए, जिन्होंने इस परंपरा का पुरजोर विरोध करते हुए 01 जनवरी पर नव वर्ष की शुभकामनाएं देने वाले अपने शिक्षक से कहा – ‘मुझे बधाई न दें, ये मेरा नव वर्ष नहीं।’ ये शख्स थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शुरुआती प्रचारकों में से एक पंडित जी सनातन संस्कृति के उपासक थे।
यह किस्सा सन्‌ 1937 का है, जब वे छात्र जीवन में थे और कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज में अध्ययनरत थे। तब कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाने वाले शिक्षक ने 01 जनवरी को कक्षा में सभी विद्यार्थियों को नव वर्ष की बधाई दी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जानते थे कि शिक्षक पर अंग्रेजी संस्कृति का प्रभाव है।
इसलिए पंडित जी ने भरी कक्षा में तपाक से कहा – ‘आपके स्नेह के प्रति पूरा सम्मान है आचार्य, किंतु मैं इस नव वर्ष की बधाई नहीं स्वीकारूंगा क्योंकि यह मेरा नव वर्ष नहीं।’ यह सुन सभी स्तब्ध हो गए।
पंडित जी ने फिर बोलना शुरू किया – ‘मेरी संस्कृति के नव वर्ष पर तो प्रकृति भी खुशी से झूम उठती है और वह गुड़ी पड़वा पर आता है।’ यह सुनकर शिक्षक सोचने पर मजबूर हो गए। बाद में उन्होंने स्वयं भी कभी अंग्रेजी नव वर्ष नहीं मनाया।

Live Share Market :

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

SP ऑफिस में आरक्षक का हाईवोल्टेज ड्रामा:DSP के सामने फाड़ी वर्दी,कहा- पुलिस ही पुलिस की नहीं सुनती,तो वर्दी पहनने का क्या फायदा??

बता दें कि आरक्षक सुल्तान सिंह पूर्व में भी विवादों से घिरा रहा है। पुलिस लाइन से दो महीने पहले डीजल चोरी का आरोप...

सब इंस्पेक्टर का खौफनाक कदम:SI ने पत्नी और बेटे की गला रेतकर हत्या की,फिर ट्रेन से कटकर की खुदकुशी

बता दें कि शुरुआती जांच में बताया जा रहा है कि SI ने पत्नी की चरित्र शंका के जरिए मौत के घाट उतार दिया।हालांकि...

दुःखद:तेज रफ्तार ट्रक ने पुलिस एएसआई को कुचला,घटनास्थल पर दर्दनाक मौत

राजगढ़/मध्यप्रदेश। मध्यप्रदेश के राजगढ़ में दर्दनाक सड़क हादसे में एक ASI की मौत हो गई। ASI को एक तेज रफ्तार ट्रक ने बाइक सहित रौंद...

नरसिंहपुर जिले में भीषण सड़क हादसा,तीन यात्रियों की मौत,18 घायल

नरसिंहपुर/मध्यप्रदेश। नरसिंहपुर में अनियंत्रित होकर एक प्राइवेट यात्री बस डिवाइडर पर चढ़कर दुर्घटना ग्रस्त हो गई खचाखच भरी बस पलटने से 3 लोगों की मौके...
error: Content is protected !!