भोपाल/मध्यप्रदेश………….
26 बरस पहले राम जन्मभूमि आंदोलन की बदौलत बीजेपी दो सीटों से उठकर देश की सत्ता तक पहुंच गई राम जन्मभूमि आंदोलन रिटर्न, इस सर्टिफिकेट के साथ कई नेता सियासत में सत्ता की सीढियां चढ गए। पर इस आंदोलन में सिर्फ भीड़ की हैसियत में रहे कारसेवकों के हिस्से में गुमनामी आई। अयोध्या में धर्म संसद के साथ जब राम मंदिर का मुद्दा फिर गरमाया है, एक ऐसे ही कार सेवक की कहानी, जिसने बाबरी विध्वंस में अपने शरीर का एक हिस्सा भी खो दिया और बाद के बरसों में सब्र भी खो रहा है।
क्या है मामला……………
भोपाल के नजदीक सुआखेड़ा गांव में रहने वाले इस कारसेवक की बाबरी विध्वंस के बाद के बरसों में सियासत बदलती गई, राजनेता भी बदले राम जन्मभूमि आंदोलन में किए गए बलिदान की कीमतें भी अदा हुईं, लेकिन इसी आंदोलन में शरीर का आधा हिस्सा गंवा चुके अंचल सिंह मीणा की जिंदगी जैसे उसी एक तारीख पर थम गई। गुंबद के एक हिस्से का मलबा अंचल की पीठ पर ऐसा गिरा कि सरकारें गिर जाने के बाद ही उसे होश आया शुरुआत में इलाज के दौरान तक बीजेपी नेताओं ने पूछ परख की, फिर ये कारसेवक किनारे हो गया अंचल का अफसोस बस इतना कि बलिदान का हासिल क्या हुआ 30 बरस की उम्र में अपाहिज हुए अंचल ने पिछले 26 साल जमीन पर घिसट कर गुजारे हैं। सिर से लेकर पैर तक शरीर के हर हिस्से पर जख्म हैं और दिलों दिमाग पर लगे जख्म तो और भी गहरे हैं। अंचल के बलिदान की कीमत उनकी पत्नी पान बाई ने भी चुकाई। ढाई तीन बरस के बच्चों की परवरिश अकेले की, परिवार भी संभाला और पति को भी सब बस रामभरोसे!
जिस जत्थे में अंचल और उन जैसे कारसेवक अयोध्या गए थे, उस जत्थे की अगुवाई कर रहे बजरंग दल के राजेन्द्र गुप्ता मंजूर करते हैं कि वो जुनून था। और उस जुनून में कईयों को सत्ता मिली और कई साथ और सहानुभूति के लिए भी तरसते रह गए।