गौरतलब है कि तीतरडांड गांव तक पहुंचने के लिए पहाड़ी नाले को पार करना पड़ता है। पुलिस जवान और ड्राइवर ने कांवड़ बनाकर उसमें गर्भवती महिला को बैठाया और फिर कांवर के माध्यम से गर्भवती को ढोकर 112 एम्बुलेंस वाहन तक पहुंचाया। इस दौरान जवानों ने न सिर्फ दुर्गम रास्तों को पार किया, बल्कि एक पहाड़ी नाले को भी पार किया।
कोरबा/छत्तीसगढ़……
जिले में पुलिसकर्मी की एक मानवता सामने आई है, जिसमें एक गर्भवती महिला को कांवर के सहारे एक किमी तक कंधे पर लादकर 112 वाहन तक पहुंचाया, जिसके बाद वाहन में बिठाकर महिला को अस्पताल रवाना किया गया। महिला ने अस्पताल में स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया है।
क्या है पूरा मामला…….
दरअसल,वनांचल क्षेत्र में स्थित श्यांग थाना अंतर्गत ग्राम तीतरडांड निवासी एक गर्भवती को मंगलवार की सुबह प्रसव पीड़ा होने लगी। परिजनों ने इसकी सूचना 112 को दी। जिसके बाद श्यांग थाना क्षेत्र से 112 की टीम गांव के लिए रवाना हुई, लेकिन रास्ते में बड़ा नाला होने के कारण उसे पार करना मुश्किल था। तब 112 टीम में शामिल सिपाही सुखदेव उरांव व चालक गौतम सिंह राठिया पैदल ही गांव तक पहुंचे। जहां डंडे में रस्सी बांधकर कांवर बनाया गया। जिसमें गर्भवती को बिठाया गया। इसके बाद सिपाही सुखदेव व महिला के परिजनों ने कांवर उठाकर गांव से नाला पार कराया। उसके बाद उसे अस्पताल पहुंचाया गया। दरअसल,कोरबा जिले के सुदूर वनांचल स्थित तीतरडांड गांव में रास्ता खराब होने की वजह से एक गर्भवती महिला को कांवड़ के सहारे एंबुलेंस तक पहुंचाया गया। दरअसल तीतरडांड गांव के शिव कुमार कोरवा की पत्नी अमरिका बाई कोरवा को सुबह से प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। जिसके बाद परिजनों ने एम्बुलेंस को फोन करके बुलाया। एम्बुलेंस 112 की टीम जब पहुंची तो उसे पता चला कि तीतरडांड गांव तक जाने के लिए कोई रास्ता ही नहीं है। इस गांव के रास्ते इतने दुर्गम थे कि गांव तक एंबुलेंस किसी भी तरह पहुंच ही नहीं सकती थी। ऐसे में श्यांग थाने में तैनात पुलिस आरक्षक सुखदेव उरांव और ड्राइवर गौतम सिंह राठिया आगे आए। दोनों पैदल ही गांव के लिए निकल पड़े, दोनों करीब एक किलोमीटर पैदल चलकर गांव तक पहुंचे। प्रसव पीड़ा से कराह रही महिला को कांवड के सहारे लेकर एम्बुलेंस तक आए। जिसके बाद महिला को सकुशल अस्पताल पहुंचाया गया। यह घटना मंगलवार की बताई जा रही है। छत्तीसगढ़ के कई जिलों में अब भी कई ऐसे गांव हैं, जहां पहुंचने के लिए कठिन रास्तों को पार करना पड़ता है। इन पहुंचविहीन गांवों में आदिवासियों की संख्या बहुतायत है। तीतरडांड जैसे कई गांव चिकित्सकीय सुविधाओं की बाट जोह रहे हैं।